बुधवार, 2 सितंबर 2015

- भगत-बुतरु संवाद : चिंटू सीरीज़ : 1 –



भगत जी     - कुछ कहना चाह रहे हो ? तुम्हारा चेहरा तुमसे पहले ही कह देता है !

बुतरु        - हाँ SSS । असल में एक बड़ा जोरदार भाषण हाथ लगा है । एक मित्र के यहाँ देखा था । उसको पूरा लिख कर ले आया हूँ ।

भगत जी     - किसका भाषण है ?

बुतरु        - चिंटू महारज का ।

भगत जी     - चिंटू महाराज ! नाम ही रोचक प्रतीत होता है । ठीक है सुनाओ ।

बुतरु ने सुनाना शुरू किया –

बड़ी भारी भीड़ थी । लोग एक दूसरे पर चढ़े जा रहे थे । चिंटू महाराज कह रहे थे : -

हमारा देश एक भावना-प्रधान देश है । आपने कृषि-प्रधान सुना होगा । समाजशास्त्रीय और व्यवहारिक तरीके से सोचेंगे तो पाएँगे कि देश पूर्ण-रूपेण भावना-प्रधान है ।

कभी स्थिर हो कर देखने-सोचने-समझने की कोशिश करें ।

भावना को उभारा जाता है । भावना से खेला जाता है । भावना को भड़काया जाता है । भावना को आहत किया जाता है । भावना का सम्मान किया जाता है । .....है कि नहीं ?

सभा में चुप्पी । मानो सभी सचमुच ही सोचने- समझने लग गए हों ।

अच्छा एक बात बताईए, चिंटू महारज ने आगे कहा –
क्रिकेट देखते हैं आपलोग ?

हाँ का हुँकारा लगाया भीड़ ने ।

और अगर आप न भी देखते हों, तो घर में देखने वाले दीवाने तो होंगे ही ।
क्यों देखते हैं भाई ?
भावना । विशुद्ध भावना ।

देखिए, खेलने वालों को पैसा मिल जाता है । आयोजकों- प्रायोजकों को पैसा मिल जाता है । और देखने वालों को ? भावना तुष्‍ट होती है । किसी को सपोर्ट किया, किसी को जिताया । यही न ?

खेलने वालों की भी भावना होती है । पर एक बात सोचिए, उनका तो काम है खेलना ।
बाकियों का ?

सब अपना काम-धंधा छोड़कर ही बैठे रहते हैं न ?

यही बात आप फिल्मों पर भी लागू कर सकते हैं । बल्कि मैं कहता हूँ , हर चीज पर ।
आप यहाँ इस सभा में आए हैं – इस पर भी ।

भीड़ में कई चेहरे मुदित हुए । अनुमोदन में हिले । और तकरीबन सब-के-सब इस भावना से ग्रसित हो गए कि क्या ज्ञान की बात कही है महाराज ने ! जय हो !

महाराज आगे कह रहे थे –

आपने मीडिया का हाल देखा ही है ।

खबरें । सनसनी । प्रचार-प्रसार । टीआरपी । विज्ञापन । प्रायोजक । पैसा । मीडिया । खबरें ।

भावना का पूरा दुश्‍चक्र ही है । कुछ लोगों को अर्थशास्त्र में पढ़ा हुआ गरीबी का दुश्‍चक्र याद आ रहा होगा ।

हल्की-मद्धम करतल ध्वनि संचारित हो गई ।

भावनाओं को, अगर ध्यान देंगे , तो अपनी हर तरफ पाएँगे । और तरह-तरह की भावनाओं को।

हमारे देश में आमतौर पर हर पाँच साल में, कभी-कभी जल्दी भी, भावनाओं का पूरा खेल होता है । पूरी उठा-पटक चलती है । हर तरह की भावनाएँ सक्रिय हो जाती हैं ।

अब देखिए भावनाओं के प्रकार । विभिन्न रंगों वाली – केसरिया । हरी । सफेद । लाल । पीली। नीली । गोरी । काली ।

सामिष । निरामिष ।
धीर । अधीर ।
कलुषित । सात्विक ।

कहने का तात्पर्य है कि आपके जीवन का हर एक क्षण भावनाओं से जुड़ा हुआ है । बल्कि मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ , भावनाओं से बँधा हुआ है ।भावना- चालित है ।

हाँ, एक और तरह की भावना जोड़ना चाहूँगा, आज के परिप्रेक्ष्य में ।

सब लोग मंच की ओर देखने लगे ।

महाराज ने मुस्कुरा के कहा –

रेसिडेंट । नॉन – रेसिडेंट ।

सभा में एक ठहाका फूट पड़ा ।

देखिए, मैं भी क्या कर रहा हूँ ? भावानाओं को व्यक्त ही कर रहा हूँ । हाँ, इतना जरूर है ,और मैं यह दावा कर सकता हूँ कि मैंने पूरे जनमानस की भावनाओं को पकड़ लिया है और उसे ही आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

सभा में फिर से तालियाँ गूँज गईं ।

महारज ने फिर कहा :-
बहुत समय हो गया है । आप सबों के भी कई काम होंगे । मेरा तो काम है प्रवचन । पर आपको तो जरूरी काम होंगे । फिर अब तक तो क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम भी लागू हो चुका है आपके यहाँ बैठे रहने पर !

तालियाँ गड़गड़ा गईं इस बार ।

चिंटू महाराज मंच पर हाथ जोड़े खड़े हो गए । लोग उनके सामने शीश नवाते गुजरने लगे । मंच के कोने में शीशे का दान-पात्र रखा था । उसका रंग इंद्रधनुषी-सा होने लगा – नीला,हरा , लाल .....।

भगत जी     - सचमुच रोचक।

बुतरु        - अभी इससे भी ज्यादा रोचक है । दरअसल वीडियो में कुछ अन-डिलीटेड सीन्‍स भी रह गए हैं । उनको भी सुन लीजिए :-

बुतरु ने आगे सुनाया । सभा के थोड़ी देर बाद का वीडियो था । चिंटू महाराज आधिकारिक पीत-वस्त्रों के स्थान पर कुर्ते पाजामे में चाय पी रहे थे ।

उन्होंने चेले से पूछा - कैसा बोले? ठीके-ठाक न?

चेला               - ठीके-ठाक ? क्या बोलते हैं ? अईसा चलता रहेगा न तो बाजी मराइए गया समझिए ।

चिंटू महाराज        - हाँ, थोड़ा प्रैक्टिस और जरूरी हो गया है । इ भासन को थोड़ा ठीक से लिखना होगा । और कोटेसन – उटेसन का भरमार भी रखना होगा । डायलोग जरूरी होता है । है कि नहीं ?

चेला               - एकदम्मे ठीक है महाराज ।


भगत जी     - गज़ब ! ये क्या है भाई ?

बुतरु        - वही तो ! लगता है महाराज पब्लिक में कुछ और हैं, प्राइवेट में कुछ और । वैसे हो सकता है सिर्फ लैंग्वेज का इश्यू हो थोड़ा ।

भगत जी     - जो भी हो । है इंटरेस्टिंग । ऐसा करो तुम्हारा होम-टास्क हुआ कि इन महाराज के बारे में पूरा पता करो और हमलोगों को बताओ । हमलोग जरूर किसी रोचक किस्से के मुहाने पर खड़े हैं ।


बुतरु        - जी, कोशिश करता हूँ ।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कवि की क्लास

  कवि की क्लास [ एक सर्वथा काल्पनिक घटना से प्रेरित ]         ( एक)  हरेक  माल   सात  सौ  पचास वे  कवि   बनाते   खासमखास कवि बनो, छपाओ,  बँट...