भगत जी - कुछ कहना चाह रहे हो
? तुम्हारा चेहरा तुमसे
पहले ही कह देता है !
बुतरु - हाँ SSS । असल में एक बड़ा जोरदार
भाषण हाथ लगा है । एक मित्र के यहाँ देखा था । उसको पूरा लिख कर ले आया हूँ ।
भगत जी - किसका भाषण है ?
बुतरु - चिंटू महारज का
।
भगत जी - चिंटू महाराज ! नाम
ही रोचक प्रतीत होता है । ठीक है सुनाओ ।
बुतरु ने सुनाना शुरू किया –
बड़ी भारी भीड़ थी । लोग एक दूसरे पर चढ़े जा रहे थे । चिंटू महाराज कह रहे
थे : -
हमारा देश एक भावना-प्रधान देश है । आपने कृषि-प्रधान सुना होगा । समाजशास्त्रीय
और व्यवहारिक तरीके से सोचेंगे तो पाएँगे कि देश पूर्ण-रूपेण भावना-प्रधान है ।
कभी स्थिर हो कर देखने-सोचने-समझने की कोशिश करें ।
भावना को उभारा जाता है । भावना से खेला जाता है । भावना को भड़काया जाता
है । भावना को आहत किया जाता है । भावना का सम्मान किया जाता है । .....है कि नहीं
?
सभा में चुप्पी । मानो सभी सचमुच ही सोचने- समझने लग गए हों ।
अच्छा एक बात बताईए, चिंटू महारज ने आगे कहा –
क्रिकेट देखते हैं आपलोग ?
हाँ का हुँकारा लगाया भीड़ ने ।
और अगर आप न भी देखते हों, तो घर में देखने वाले दीवाने तो होंगे ही ।
क्यों देखते हैं भाई ?
भावना । विशुद्ध भावना ।
देखिए, खेलने वालों को पैसा मिल जाता है । आयोजकों- प्रायोजकों को पैसा मिल जाता
है । और देखने वालों को ? भावना तुष्ट होती है । किसी को सपोर्ट किया, किसी को जिताया । यही
न ?
खेलने वालों की भी भावना होती है । पर एक बात सोचिए, उनका तो काम है खेलना
।
बाकियों का ?
सब अपना काम-धंधा छोड़कर ही बैठे रहते हैं न ?
यही बात आप फिल्मों पर भी लागू कर सकते हैं । बल्कि मैं कहता हूँ , हर चीज पर ।
आप यहाँ इस सभा में आए हैं – इस पर भी ।
भीड़ में कई चेहरे मुदित हुए । अनुमोदन में हिले । और तकरीबन सब-के-सब इस
भावना से ग्रसित हो गए कि क्या ज्ञान की बात कही है महाराज ने ! जय हो !
महाराज आगे कह रहे थे –
आपने मीडिया का हाल देखा ही है ।
खबरें । सनसनी । प्रचार-प्रसार । टीआरपी । विज्ञापन । प्रायोजक । पैसा
। मीडिया । खबरें ।
भावना का पूरा दुश्चक्र ही है । कुछ लोगों को अर्थशास्त्र में पढ़ा हुआ
‘ गरीबी का दुश्चक्र’ याद आ रहा होगा ।
हल्की-मद्धम करतल ध्वनि संचारित हो गई ।
भावनाओं को, अगर ध्यान देंगे , तो अपनी हर तरफ पाएँगे । और तरह-तरह की भावनाओं को।
हमारे देश में आमतौर पर हर पाँच साल में, कभी-कभी जल्दी भी, भावनाओं का पूरा खेल
होता है । पूरी उठा-पटक चलती है । हर तरह की भावनाएँ सक्रिय हो जाती हैं ।
अब देखिए भावनाओं के प्रकार । विभिन्न रंगों वाली – केसरिया । हरी । सफेद
। लाल । पीली। नीली । गोरी । काली ।
सामिष । निरामिष ।
धीर । अधीर ।
कलुषित । सात्विक ।
कहने का तात्पर्य है कि आपके जीवन का हर एक क्षण भावनाओं से जुड़ा हुआ है
। बल्कि मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ , भावनाओं से बँधा हुआ है ।भावना- चालित है ।
हाँ, एक और तरह की भावना जोड़ना चाहूँगा, आज के परिप्रेक्ष्य में ।
सब लोग मंच की ओर देखने लगे ।
महाराज ने मुस्कुरा के कहा –
रेसिडेंट । नॉन – रेसिडेंट ।
सभा में एक ठहाका फूट पड़ा ।
देखिए, मैं भी क्या कर रहा हूँ ? भावानाओं को व्यक्त ही कर रहा हूँ । हाँ, इतना जरूर है ,और मैं यह दावा कर सकता हूँ कि मैंने पूरे जनमानस की
भावनाओं को पकड़ लिया है और उसे ही आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
सभा में फिर से तालियाँ
गूँज गईं ।
महारज ने फिर कहा :-
बहुत समय हो गया है
। आप सबों के भी कई काम होंगे । मेरा तो काम है प्रवचन । पर आपको तो जरूरी काम होंगे
। फिर अब तक तो क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम भी लागू हो चुका है आपके यहाँ बैठे रहने
पर !
तालियाँ गड़गड़ा गईं
इस बार ।
चिंटू महाराज मंच पर
हाथ जोड़े खड़े हो गए । लोग उनके सामने शीश नवाते गुजरने लगे । मंच के कोने में शीशे
का दान-पात्र रखा था । उसका रंग इंद्रधनुषी-सा होने लगा – नीला,हरा , लाल .....।
भगत जी - सचमुच रोचक।
बुतरु - अभी इससे भी ज्यादा रोचक है । दरअसल वीडियो
में कुछ अन-डिलीटेड सीन्स भी रह गए हैं । उनको भी सुन लीजिए :-
बुतरु ने आगे सुनाया
। सभा के थोड़ी देर बाद का वीडियो था । चिंटू महाराज आधिकारिक पीत-वस्त्रों के स्थान
पर कुर्ते पाजामे में चाय पी रहे थे ।
उन्होंने चेले से पूछा
- कैसा बोले? ठीके-ठाक न?
चेला - ठीके-ठाक ? क्या बोलते
हैं ? अईसा चलता रहेगा न तो बाजी मराइए गया समझिए ।
चिंटू महाराज - हाँ, थोड़ा प्रैक्टिस और जरूरी हो गया है
। इ भासन को थोड़ा ठीक से लिखना होगा । और कोटेसन – उटेसन का भरमार भी रखना होगा । डायलोग
जरूरी होता है । है कि नहीं ?
चेला - एकदम्मे ठीक है महाराज ।
भगत जी - गज़ब ! ये क्या है भाई ?
बुतरु - वही तो ! लगता है महाराज पब्लिक में कुछ
और हैं, प्राइवेट में कुछ और । वैसे हो सकता है सिर्फ लैंग्वेज का इश्यू हो थोड़ा
।
भगत जी - जो भी हो । है इंटरेस्टिंग । ऐसा करो तुम्हारा
होम-टास्क हुआ कि इन महाराज के बारे में पूरा पता करो और हमलोगों को बताओ । हमलोग जरूर
किसी रोचक किस्से के मुहाने पर खड़े हैं ।
बुतरु - जी, कोशिश करता हूँ ।
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