सरगोशियाँ : मोहब्बत का तर्जुमा
[सरगोशियाँ,
कवयित्री – संगीता कुजारा टाक , श्वेतवर्णा
प्रकाशन, नोएडा, 2024]
कभी-कभी जो असर बात को
जोर-जोर से कहने का नहीं होता, वहीं फुसफुसा कर कहा जाना बात को हाइलाइट कर
जाता है । सरगोशी यानी ‘व्हिस्पर’ यानी फुसफुसाहट । संगीता कुजारा टाक के
कविता संग्रह का शीर्षक है ‘ सरगोशियाँ’। भरे कमरे में बॉस फुसफुसाकर डाँट पिला जाए, सरे-राह
कोई फुसफुसाकर प्रेम की अरजी डाल जाए, फुसफुसाकर राज़ की बात
की जाए .... सरगोशियाँ बहुत असरदार होती हैं । ‘उमराव जान’
फिल्म के एक गीत/नज़्म की यह पंक्ति याद तो होगी ही –“ याद तेरी कभी
दस्तक, कभी सरगोशी से...” । दूसरी तरह से कहें तो सरगोशियाँ
भभकाने वाली नहीं सिझाने-पकाने वाली आग होती हैं ।
संगीता कुजारा टाक का दूसरा कविता संग्रह ‘सरगोशियाँ’
2024 में प्रकाशित हुआ । इस संग्रह में तीन-तीन पंक्तियों की
कविताएँ हैं, जिन्हें कवयित्री ‘त्रिवेणी’
का नाम देती हैं । गुलज़ार की तीन पंक्तियों वाली कविताओं के संग्रह
के नाम से प्रेरित होकर। यह संग्रह उन्होंने गुलज़ार को भी समर्पित किया है ।
संगीता जी के पहले
संग्रह ‘ खुद से गुज़रते हुए’ की भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार
अशोक प्रियदर्शी ने रेखांकित किया था कि संग्रह की कविताओं में साहिर की जादूगरी
और अमृता प्रीतम के प्यार की गर्मजोशी, दोनों का ही आस्वाद
मिलेगा । इस संग्रह की कविताओं के विषय में भी यह बात कही जा सकती है । गुलज़ार के नाम
समर्पण होने से उनका प्रभाव भी प्रकट है ।
इन दोनों संग्रहों की जमीन
उर्दू नज्मों की जमीन है । सरगोशियाँ की पंक्तियाँ पढ़ते समय पाठक को इस बात का
अहसास होता है कि इनका रंग उर्दू वाली गली का है । अमृता प्रीतम, साहिर,
गुलज़ार, फ़ैज़ के साथ-साथ कई बहुत खूबसूरत हिंदी
फिल्मी गीतों की अनुगूँज भी इन पंक्तियों में गुँथी लगती है । इसका असर यह होता है
कि आप इन कविताओं के प्यार में पड़ जाते हैं । संग्रह की कविताओं का लहजा बेशक
उर्दू नज्मों-सा लगता हो, इनमें अभिव्यक्त अनुभवों की
व्यापकता और उनका असर मद्धम नहीं पड़ता ।
संगीता जी के दोनों
संग्रहों को पढ़कर यह लक्षित किया जा सकता है कि इन कविताओं का मूल भाव उदासी है ।
लेकिन यह उदासी किसी व्यथा या कष्ट के कारण पैदा हुई बेबसी से नहीं है । इन कविताओं
में नैराश्य नहीं है । इन कविताओं की उदासी की तह में एक नॉस्टेल्जिया है । एक विश्रांति
है । यह नॉस्टेल्जिया कई बार एक शब्द के प्रयोग कर देने भर से आ जाता है , जैसे –
अटैची, सिटकनी, रसद आदि । कभी यह किसी वाक्यांश
के माध्यम से आ जाता है, जिनको पढ़कर पाठक का मन एक गुजरे हुए
समय में स्थानांतरित हो जाता है । उसे कोई गीत, कोई कविता या
कोई भाव याद आ जाता है जो कभी उसका प्रिय रहा है । जैसे—‘ बैठ
मेरे पास’, ‘ मैं तेरा पिछला वक्त हूँ’ या ‘ होठों से हँसी गिर गई’ आदि
। इन कविताओं में प्रेम का शायद सबसे
उदात्त रूप समर्पण और खुद को उत्सर्ग कर देने की भावना है । इन कविताओं से झाँकता
उदासी का रंग इस वजह से भी है । बकौल साहिर “ मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की
है ” । संगीता जी लिखती हैं –
“ चीखती रही, चिल्लाती रही
मगर अंदर ही अंदर
सन्नाटे को मैंने कोई नुकसान नहीं पहुँचाया”
स्वाभिमान के एवज में प्यार नहीं चाहिए ।
वैसे तो मूल रूप से
संग्रह की कविताओं में प्रेमानुभूतियाँ हैं, लेकिन अलग रंग की दो विलक्षण
कविताओं की चर्चा करना चाहूँगा । कविताएँ देखें –
“ उतार कर ले गई
उदासी का पैरहन
आज माँ मेरे घर आई थी !”
और
“ दुनिया के नक्शे में नहीं है
मेरा घर
मैं औरत हूँ”
‘त्रिवेणी’ के
बारे में गुलज़ार कहते हैं “ शुरू शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी । त्रिवेणी नाम इसीलिए दिया था कि
पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं लेकिन इन दो
धाराओं के नीचे एक और नदी है— सरस्वती, जो गुप्त है,
नज़र नहीं आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना
है । तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा
हुआ है ।” ‘सरगोशियाँ’ की त्रिवेणियों
में भी एक सरस्वती उद्घाटित होती है । इस
तरह का उद्घाटन अमीर खुसरो की मुकरियों में देखा जा सकता है, अलबत्ता वहाँ हास्य का पुट और पहेलियाँ बुझाने का कौतुक ज्यादा है । तीन
पंक्तियों की जापानी कविता ‘हाइकु’ तो
प्रसिद्ध है ही।
कविता सिर्फ शब्द नहीं, कविता
सिर्फ अर्थ नहीं, कविता सिर्फ भाव नहीं । वह सबकुछ है,
और सबसे अलग भी है । कविता में शब्द आते हैं, वाक्य
आते हैं, कवि के भाव, उसकी दृष्टि आती
है । फिर पाठक की तरफ से उसमें कुछ जुड़ता है । आलोचकगण शास्त्र की ओर से भी कविता
को परख लेते हैं । मैं समझता हूँ कि इन
सारे पैमानों पर संगीता कुजारा टाक की कविताएँ टिकती हैं । उनकी कविताएँ क्या
स्थान पाएँगी, यह तो अभी से नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना निश्चित है कि ये कविताएँ पाठक के मन पर खासा असर छोड़ती हैं और
उसके साथ देर तक बनी रहती हैं । कविता में जो प्रत्यक्षत: दिख रहा होता है,
उससे अलग और उससे ऊपर भी एक अर्थ होता है , जो
कविता को पढ़ते-पढ़ते पाठक के मन में आभासित हो उठता है । यही आभासित होना कविता को कविता
बनाता है । उदाहरण के तौर पर संग्रह की यह कविता देखिए –
“ ख़त्म हो गई है
आँखों की रसद
आना पड़ेगा अब तुम्हें”
जैसा कि ऊपर जिक्र किया
गया है, संगीता जी के दोनों संग्रहों की कविताओं पर पुराने बड़े कवियों का
प्रभाव-सा दिखता है । अपने दोनों संग्रहों की भूमिकाओं में अमृता प्रीतम और गुलज़ार
के प्रभाव के विषय में तो उन्होंने चर्चा भी की है । हमें यह याद रखना चाहिए कि
प्रभावित होने और नकल करने में जमीन आसामान का फर्क होता है । मुकेश और किशोर कुमार अपने शुरुआती गीतों में
के.एल सहगल से प्रभावित दिखते हैं, जिसे उन्होंने खुद भी
स्वीकारा है । लेकिन बाद में दोनों ने अपनी स्वतंत्र और बेहतरीन पहचान बनाई । संगीता
जी की भी एक स्वतंत्र पहचान उनकी आने वाली रचनाओं में उभर कर आएगी । इतना तो तय है ही
कि उनकी कविताओं में वह बात जरूर है जिसे एक सच्चा पाठक ढूँढ़ता है । कहते हैं अच्छा
अभिनेता वह होता है, जिसका अभिनय इतना स्वाभाविक हो कि अभिनय अभिनय जैसा नहीं लगे ।
कविता के विषय में भी यही बात कही जा सकती है । अच्छा कवि वही है जिसकी कविता कविता जैसी न लगे। जिसे पढ़कर पाठक को यह लगे कि
ऐसी कविता तो वह भी लिख सकता है । कवि की यही सफलता है । ‘सरगोशियाँ’
में ऐसी अनेक पंक्तियाँ हैं ।
‘सरगोशियाँ’ की एक खास बात है इसमें हर कविता के साथ कवयित्री द्वारा बनाए गए
रेखाचित्रों का होना । ये रेखाचित्र कविताओं के पूरक के रूप में उभर कर आते हैं ।
किताब की प्रस्तुति सुरुचिपूर्ण है । ईबुक के बढ़ते हुए चलन को देखते हुए प्रकाशक
को संग्रह का ईबुक संस्करण भी निकालना चाहिए ।
संग्रह में टाइप की कुछ
गलतियाँ रह गई हैं । कुछ स्थानों पर वर्तनी की गलतियाँ हैं । नुक्ते के प्रयोग में
सावधानी बरतनी चाहिए । केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की मानक वर्तनी की पुस्तिका में
हिन्दी में नुक्तों के प्रयोग नहीं स्वीकारा गया है, लेकिन यदि
नुक्तों का प्रयोग किया जा रहा है, तो सावधानी अपेक्षित है ।
खास तौर पर जहाँ नुक्ते नहीं लगाए जाने हों और वहाँ नुक्ते लगे दिख जाएँ । हालाँकि
इससे अर्थ संप्रेषण और ग्रहण में कोई दिक्कत नहीं होती , यह अच्छी
बात है ।
संग्रह एक बैठक में पढ़ा
जा सकने लायक है । फिर,
फिर-फिर पढ़े जाने लायक ।