पटना : कुछ कविताएँ
तरावट
भटक रहा हूँ सड़कों पर
'टैम्पू' में घूम रहा हूँ
ये मेरा शहर है पटना, और
मैं यहाँ कोई नौकर नहीं हूँ।
***
पटना खास
घास की हरियाली ने
अमलतास की डाली ने
जूही के फूलों ने
कुछ याद पड़े उसूलों ने
कहा, पटने में रुकते हैं !
चप्पल से उड़ी छीटों से
इधर-उधर के कीटों से
बारिश की धार से
या फिर किसी दुत्कार से
भला इतने से झुकते हैं ?!
***
पटना की सड़कों पर खोया
पटना की सड़कों पर खोया
मालूम नहीं मन क्यों रोया
क्या-क्या दाग लगे दामन पर
कितने दागों को धोया
दुख में रोई हैं आँखें, तो
खुशी के आँसू भी रोया
मालूम नहीं मन क्यों रोया
क्या जीवन है, क्या बीत गया
क्या भरा हुआ, क्या रीत गया
क्या क्यों पाया
क्या क्यों खोया
मालूम नहीं मन क्यों रोया
अस्थि-मज्जा-रक्त बना
बस शहर नहीं मेरा पटना
फल मैं हूँ पटना बीज मेरे
अंदर है जैसे बोया
मालूम नहीं मन क्यों रोया
है गर्भनाल इस मिट्टी में
भस्म न जाने होऊँ कहाँ
जबतक संज्ञा है, है पटना
जबतक पटना है संज्ञा है
मैं पटना में
पटना मुझमें
लय जीवन में
जीवन लय में
घटित हो रहा वो मैं हूँ
पटना है घटना गोया
मालूम नहीं मन क्यों रोया
पटना की सड़कों पर खोया
***
विदीर्ण
नहीं गया अगर
तो कोई मर तो नहीं जाएगा वहाँ
पटने में
किसी के लिए कोई मरता है कहाँ
जीता भी कहाँ है कोई किसी के लिए ?
जानी होती है जान
तो चली जाती है देखते-देखते
आँखों के सामने
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाए
चला जाता है जाने वाला
मोह के धागों से
बीनी जाती है अहं की चादर
क्रूर बनाती, कभी कातर
अपनी ही अपेक्षाओं के मारे हम
फिरते हैं मारे-मारे
प्रेम की परिभाषाएँ गढ़ते
हमें चाहिए होती है
पूरी धरती
सारा आकाश
पूर्ण समर्पण
अटूट विश्वास
बदले में
सूई की नोक भर भी कुछ
देने को हम नहीं तैयार
यह संसार
हमारे कर्मों की
प्रतिच्छाया है
भूल जाते हैं हम
भूल-सुधार कर देती है जिंदगी
अपने ही तरीके से...!
आपकी कविता समस्तीपुर ने आपकी संवेदना के नये रूप से हमारा परिचय कराया था। और अब पटना पर केन्द्रित ये कविताएँ... आप मन के भीतर इन जगहों के प्रति एक नमी पैदा कर देते हैं। बधाई चेतन जी इन संवेदनशील कविताओं के लिए।
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