इश्क के तीन सीजन : 'ऐसे क्यूँ...'
कहते हैं फिल्मों की कहानियाँ दो ही होती हैं बदले की या प्रेम की। और इनमें भी प्रेम की कहानी तो हर कहानी में गुँथी हुई होती है। प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए भला गीत से बेहतर क्या हो सकता है! हिन्दी फिल्मों में प्रेम के कितने ही अनमोल गीत भरे पड़े हैं। प्रेम के हर आयाम को पकड़ता, मन के हर भाव को पकड़ता हुआ कोई न कोई गीत आपके ध्यान में आ ही जाता है। प्रेम जीवन की अंतः सलिला धारा है और हिंदी फिल्मों के गीत प्रेम के लिए अंतः सलिला हैं। हिंदी फिल्मों एक से एक दिग्गज गीतकार हुए हैं। आज भी अनेक गीतकार बेहतरीन गीत लिख रहे हैं। बहरहाल, बात फिल्मों की कहानियों में प्रेम और उस प्रेम को उद्गार देते हिंदी फिल्मों के गीतों की हो रही है। एक ही गीत या धुन का इस्तेमाल या विकास अलग-अलग फिल्मों में दिखे, ऐसा कम ही होता है। हमने ऐसा देखा है कि राज कपूर की कुछ फिल्मों में बजने वाला पार्श्व संगीत, उनकी बाद की फिल्मों में किसी गीत की धुन बना। आजकल फ्रेंचाइजी / सीक्वेल वाली फिल्में बन रही हैं, तो उनमें किसी गीत के एक फिल्म से दूसरी या बाद की फिल्मों तक भी सफर करना संभव हो गया है। हाल ही में आई फिल्म 'भूल-भुलैया-3' के 'मोरे ढोलना' गीत को याद किया जा सकता है। लेकिन उस गीत में प्रेम की बात नहीं है। प्रेम की बात है 'ऐसे क्यूँ में। नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई वेब सीरीज़ 'मिस मैच्ड' के तीन सीज़न आ चुके हैं। उनमें यह गाना पहले से दूसरे और फिर तीसरे सीजन तक चलता आ रहा है। विशुद्ध तकनीकी रूप से आँकेंगे तो शायद तीसरे सीजन के गीत को आप अलग रखना चाहें, लेकिन अगर भाव और अर्थ के विस्तार के हिसाब से देखेंगे तो एक ही गीत का विकास होता हुआ पाएँगे।
यह गीत 'ऐसे क्यूँ', पहले दोनों सीजन में इसी नाम से है। तीसरे सीजन का गीत है 'इश्क है'। संगीतकार हैं अनुराग सैकिया और गीतकार हैं राज शेखर। पहला सीजन 2020 में आया था। उसमें जो 'ऐसे क्यूँ' गीत है, उसकी धुन थोड़ी ट्रेंडी किस्म की है। पहला सीजन है, प्यार की कोंपलें अभी फूट ही रही हैं। गीत की शुरुआती पंक्तियाँ कुछ ऐसी हैं -
"ज़रा ज़रा अभी बात शुरू हुई
मगर खुश हूँ मैं आजकल
अभी तलक मेरी शाम तो ऐसी न थी
जैसी हल्की है आजकल "
प्रेम जीवन को हल्का कर देता है। जीवन भारी नहीं लगता। प्रेम की पुलक व्यक्ति को जिजीविषा से भर देती है। उसके लिए दुनिया के रंग बदलने लगते हैं। उसका मन आशा और अपेक्षा से भर जाता है। तभी तो वह किसी से पूछना चाहता है -
"एक दिन हौले से
तुमसे है ये पूछना
रातें तेरी भी थोड़ी फ़िरोज़ी
फ़िरोज़ी सी हैं भी क्या"
हिंदी फिल्मों के गीतकार को बहुत सारी बंदिशों के साथ गीत लिखना होता है। लेकिन इसके बावजूद उसके लिखे में उसका अपना व्यक्तित्व, फिल्मी गीतों की परंपरा और उसका समय तो बोलता ही है। ऊपर की पंक्तियों में फ़िरोज़ी रंगा का जिक्र आते ही क्या वहीदा रहमान की याद नहीं आ जाती, "आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है" गाते हुए? क्या वही उल्लास, वही उन्मुक्तता 'ऐसे क्यूँ' की इन पंक्तियों में नहीं झलकती। प्रेम व्यक्ति को स्वतंत्र करता है, स्वतंत्र होने की प्रेरणा देता है। हौले से पूछता है और मन को उल्लसित कर जाता है। इसी उल्लास और उन्मुक्तता को 'ऐसे क्यूँ' पकड़ता है बखूबी।
गीत का अंतिम अंतरा नायिका की तरफ से है। वह कहती है "कुछ तो लिखती हूँ, लिख के मिटाती हूँ"। प्रेम यह बताता है कि बेवजह की जाने वाली बातें भी जीवन को अर्थपूर्ण बना जाती हैं कई बार। वैसे भी कविता या गीत सिर्फ अर्थ नहीं, उनमें सिर्फ कार्यकारण संबंध नहीं होता। उसी अंतरे की अगली पंक्तियों में एक प्रश्न है, जिसे हम नायिक की घोषणा भी समझ सकते हैं-
"दिल को यूँ खोलना
सबकुछ कहकर ही
सबको बताना ज़रूरी है क्या"
यह बात प्रेम के संबंध में कितनी सटीक है! और खासकर हमारे समाज में एक लड़की ओर से सोचें, तब तो और भी। जब लोग बात का बतंगड़ बनाने को तैयार बैठे हों, तब कहाँ-कहाँ सफाई दी जाएगी। मेंहदी हसन की गाई एक ग़ज़ल की पंक्तियाँ तो याद होंगी ही -
" किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे खफा है तो ज़माने के लिए आ"
बात वही है कि कुछ कहकर आफत क्यों मोल ली जाए। प्रेम का घटित होना ज्यादा जरूरी है, प्रेम के उद्घाटित होने से !
पहले सीजन का गीत इन्हीं पंक्तियों के साथ समाप्त होता है। कमाल की बात यह देखिए कि करीब दो साल बाद जब दूसरा सीजन आता है तो 'ऐसे क्यूँ' गीत की शुरुआत पहले सीजन के गीत की आखिरी पंक्तियों से ही होती है। प्यार का सफर जारी है, दो साल बाद भी। इस बार मौसम गजलनुमा है मगर ! यह पूरा गीत नायिका की तरफ से गाया गया है। गीत शुरू तो होता है उसी बात से कि " सबकुछ कहकर ही सबको बताना ज़रूरी है क्या"। लेकिन देखिए ख्वाहिश क्या है -
" उसके होठों पे
अच्छा लगता है मेरा नाम
कुछ भी बोले वो
मन में घुलता है ज़ाफ़रान
गिरता है गुलमोहर
ख़्वाबो में रात भर
ऐसे ख़्वाबों से बाहर निकलना ज़रूरी है क्या"
प्रेम कितना विरोधाभासी होता है। एक तरफ तो यह तर्क कि सबकुछ कहकर ही कहा जाना कहाँ जरुरी है, और दूसरी तरफ यह इच्छा कि प्रियतम के होठों पर मेरा नाम आए! अगर बदनामी का अंदेशा था, तो अब कहाँ गया। और यदि बात को समझ लेने की बात है, तो दोनों पक्ष ही बात को क्यों न समझें? एक पक्ष ही क्यों बोले ? यहाँ पर गीतकार, संगीतकार और निर्देशक की चतुराई भी काम कर रही है। रेखा भारद्वाज से यह गीत गवा कर इसे नायिका का गीत होने आभास दिया गया है। आप यदि गीत को पढ़ें तो यह पाएँगे कि यह बात तो दोनों पक्षों में से कोई भी ये बातें कह सकता है। कहा ही गया है 'प्रेम गली अति साँकरी...!'
शैलेन्द्र के गीतों में अक्सर जीवन-दर्शन भी पिरोया हुआ रहता था। इस गीत के आखिरी अंतरे की पंक्तियाँ देखिए -
"बीता जो वाकया
सोचूँ मैं क्यूँ भला
बीती बातों से दिल को दुखाना जरूरी है क्या"
ये पंक्तियाँ सिर्फ प्रेम-संबंधों के बारे में नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू में भी उतनी ही कारगर पंक्तियाँ हैं। हमें साहिर भी याद आ जाते हैं"मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया...।" हमें यह भी याद आ जाता है "बीती ताहि बिसारि के...।" और हमें राज शेखर का ही एक गीत याद आ जाता है-" मूव ऑन"।
'मिसमैच्ड' का तीसरा सीजन 2024 में आया। इसमें एक गीत है" इश्क़ है"। यह गीत एक कव्वाली की शक्ल में है। याद करें कि राज शेखर की पहली फिल्म 'तनु वेड्स मनु' का बहुचर्चित गीत 'ऐ रंगरेज़ मेरे' भी एक कव्वाली के रूप में ही था। वह गीत भी इश्क़ की एक अलग ही दास्तान था। जिसने भी वह गीत सुना हो, गीत फिर छूटता ही नहीं, बना रह जाता है। साथ ही रह जाता है, गाहे बगाहे याद आते। गीत के शीर्षक के अनुसर देखेंगे तो यह गीत 'इश्क़ है', 'ऐसे क्यूँ' से अलग गीत है। लेकिन गीत के भाव और अर्थ के विकास के अनुसार देखेंगे तो तीनों गीतों में एक तारतम्य दिखेगा। पहले गीत में प्रेम की प्रथम अनुभूति की बात है, उसे समझने, उसे छुपाने, सहेजने की बात है। दूसरे गीत में बार-बार सुनने-मिलने की इच्छा की बात है। प्रेम में नई शुरुआत की बात है, बीती हुई बातों को बिसार कर आगे बढ़ने की बात है। तीसरे गीत तक आते-आते प्रेम व्यष्टि से समष्टि की ओर बढ़ चला है। प्रेम ही है जिसने दुनिया को रहने के लायक बनाया है। हर तरफ प्रेम ही प्रेम है। गीत की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
" रोशनी ही रोशनी है चार सू, जो चार सू
इश्क़ है ये इश्क़ है इश्क़ है ये इश्क़ है
जो छुपा है हर नज़र में हर तरफ़ जो रू-बरू
इश्क़ है ये इश्क़ है इश्क़ है ये इश्क़ है "
आगे गीत में पंक्ति आती है-
"साया मेरा है तू और मैं तेरा
तू दिखे या ना दिखे तेरी खुशबू कू-ब-कू"
प्रेम जब होता है तो ऐसी ही होता है। हर तरफ प्रेम ही प्रेम। प्रेम एकाकार कर देता है, मेरे व तेरे के भेद को मिटाकर। प्रेम इतना ही करता है। प्रेम बंधनमुक्त करता है। प्रेम व्यक्ति को स्वतंत्र कर देता है। प्रेम बाँधता भी है, उन्मुक्त भी करता है। गीत की पंक्तियाँ हैं-
"कोई कहता है इश्क़ हमें आबाद करता है
कोई कहता है इश्क़ हमें बर्बाद करता है
ज़ेहन की तंग दीवारों से उठकर मैं कहता हूँ
इश्क़ हमें आज़ाद करता है"
हिंदी फिल्मों के दायरे में बँधकर, बहुत ही आसान शब्दों में यह गीत कितनी बड़ी घोषणा कर गया है। इश्क़ में तंगदिली के लिए कोई जगह नहीं होती। इश्क़ हमें तंगदिली से बाहर निकालता है, खुली हवा में साँस लेना सिखाता है। प्रेम हमें कृतज्ञ होना भी सिखाता है। आज के इस घोर प्रतिद्वंद्विता के समय में, जब हर व्यक्ति पूरी तरह
आत्मकेंद्रित हो गया है, प्रेम हमें दूसरों की महत्ता स्वीकार करने की सलाहियत देता है -
"तुमसे मिले तो बैठे बिठाए
छूने लगे हैं आसमाँ
तुमसे मिले तो छोटा-सा किस्सा
बनने को है दास्ताँ"
गीत के शुरू में पंक्ति आती है "साया मेरा है तू और मैं तेरा"। यानी अभी ईगो के कुछ अंश बचे हुए हैं शायद। प्रेम में ईगो के लिए जगह नहीं होती। तभी तो बाद में गीत में पंक्ति आती है " सारा मेरा हो तू और मैं तेरा"। जिगर मुरादाबादी ने भी कहा है -
"तू नहीं मैं हूँ, मैं नहीं तू है
अब कुछ ऐसा गुमान है प्यारे"
बिना 'स्व' को खोए प्रेम मिल ही नहीं सकता। प्रेम जब विस्तार पाता है तो पूरी दुनिया को अपना बना लेना चाहता है। पूरी दुनिया का हो जाना चाहता है। यह प्रेम का जादू है। जिगर मुरादाबादी ने ही कहा है -
"इक लफ़्ज़े-मुहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है"
'ऐसे क्यूँ' प्रेम की सहज अभिव्यक्ति है। यह गीत तीन सीजन का सफर पूरा करता है, भले ही तीसरे सीजन में एक अलग नाम से। पहले सीजन में संशय की थोड़ी गुंजाइश है-
"क्या है ये माजरा
कुछ तो है मिल रहा
या फिर मैं ही बस
मन ही मन किस्से बनाने लगा"
लेकिन तीसरे सीजन तक आते प्रेम पर विश्वास पूर्णता प्राप्त कर लेता है -
"सारा मेरा हो तू और मैं तेरा
तू दिखे या ना दिखे तेरी खुशबू कू-ब-कू"
प्रेम चार सू है, कू-ब-कू है और हर तरफ रू-ब-रू है। यह इच्छा कि सारा मेरा हो तू और मैं तेरा, यह अगर सचमुच किसी के मन में जग जाए तो पूरी भी होगी-
" जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू ॥"
शर्त यह है कि 'सत्य सनेहू' होना चाहिए।
राज शेखर के गीतों में प्रेम के विविध आयाम मिलते हैं। 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' के एक गीत की पंक्तियाँ देखिए -
"हो गया है प्यार तुमसे
तुम्हीं से एक बार फिर से
बोलो अब क्या करें?"
सुपरहिट फिल्म 'एनिमल' के एक गीत की ये पंक्तियाँ देखिए -
" पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
पहली दफ़ा ही मिल के लगा"
प्रेम की कितनी अभिव्यक्तियाँ !
फरवरी फागुन का महीना है। आपके अंदर फाग के जागने का। दुपहर की धुक्कड़ का भी समय है। हल्के वॉल्यूम में 'ऐसे क्यूँ' बजाइए किसी दुपहर और महसूस कीजिए प्रेम का बरसना आसमान से, पैरों के नीचे ज़मीं का उड़ना। महसूस कीजिए 'इश्क़ में सफ़र आसमानी'। अगर इस गाने की आवाज पास वाले घर या इमारत से उठकर आप तक पहुँच रही हो, तो फिर आप यकीं मानिए कि फागुन का जादू चलकर ही रहेगा!
करीब पन्द्रह वर्षों से गीतकार के रूप में सक्रिय राज शेखर के गीतों की संख्या अभी सौ भी नहीं पहुँची है, लेकिन आप उनके गीतों को सुनेंगे तो समझेंगे, क्या असर होता है !