कभी ऐसे भी जीतूँ
कि रो पड़ूँ
इतना उठ जाऊँ
कि गिर पड़ूँ सजदे
में
दुआ करना
उम्मीदों पर खरा
उतरूँ
हर बार
बेहतर से बेहतरीन
!
चमकीं आँखें
दमका चेहरा
सद्य-स्वेद-स्नात्
सौंदर्य
सौम्य,सौम्य,सौम्य
विनीत हास
फैला प्रकाश
दीपित हुआ
पदक
तुमने छुआ !
तुम चलीं
चलकर आईं
और गले लगाईं
विजेता को
विजित कौन हुआ ?
कोटि-कोटि साधुवाद
सहस्रकोटि आशीर्वाद
मौन
मुखर हुआ !
बेटे ने
एक
तस्वीर बनाई है
जिसमें मैं हूँ
पूछती है तस्वीर
कि
मैं हूँ
तो कहाँ हूँ
मुब्तला हूँ कहाँ ?
तस्वीर
मुसव्विर हो गई है...
मैं
बिना-जवाब
बिना-पता
गुमशुदा
कहूँ
तो क्या ?!
इतना
चमका चाँद
नग हीरे का
बादल की अँगूठी में
किसी ने तो कहा है
क़बूल है
क़बूल है
क़बूल है !
कौन कमबख़्त था
जो जानता था
खेल को
बारीकियों को खेल की
जाना
तुम्हारा नाम
तो फिर जाना
है कोई एक खेल
कि
जिसको दुनिया देखती भी है
सराहती है
चाहती है
मरती है जिस पर
तुम पर
फ़िदा
कितने हुए
जो जानते थे
खेल को
जिन्होंने
समझा तुम्हारे खेल को
और
जाने
कितने-कितने
कि
जिनकी
हसरतों और हौसलों को
मिल गई जैसे
परवाज़
जो
बस थे
फ़िदा-ए-स्टेफ़ी ग्राफ़ !