शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

पाठकीय : एक देश बारह दुनिया : सहयात्री बनाती किताब


               प्रकाशक : राजपाल

शिरीष खरे की 'एक देश बारह दुनिया' : सहयात्री बनाती किताब

कल के ही अखबार में  'दी अर्बन विलेज : कमाठीपुरा टाउनशिप प्रोजेक्ट' और ' कमाठीपुरा पुनर्निर्माण समिति' से जुड़ी खबर देखी । कल ही मैंने किताब पढ़नी शुरू की थी ' एक देश बारह दुनिया' जिसका दूसरा अध्याय कमाठीपुरा पर है। यह अलग बात है कि अखबार की खबर पढ़कर इसी किताब के सूरत से जुड़े अध्याय की याद आना भी उतना ही स्वाभाविक है। 

जहाँ तक मैं समझता हूँ, हिन्दी में 'नॉन फिक्शन' का बहुत समृद्ध भंडार नहीं है। हिन्दी साहित्य कविता- कहानी- उपन्यास के इर्द- गिर्द ही ज्यादा घूमता है। इसमें से भी अगर समीक्षा/आलोचना/साहित्य इतिहास/ काव्य शास्त्र आदि को छोड़ दिया जाए तो हिन्दी में नॉन फिक्शन और उसमें भी मूल रूप से हिन्दी में लिख हुआ काफी कम हो जाएगा। 

ऐसी ही  किताब है  लेखक- पत्रकार शिरीष खरे  की 'एक देश बारह दुनिया' । यह किताब उनकी 8-9 साल के दौरान की गई यात्राओं का प्रतिफलन है, जो संभवतः उनकी पत्रिकारिता संबंधी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए की गई हैं  । इस किताब की शैली विशेष है। ज्यादातर बातें 'वर्तमान काल' में कही गई हैं। इससे एक तो लेखक का जुड़ाव उन किस्सों से ज्यादा गहरा हो जाता है, जिन्हें वह सुना रहा है, और दूसरे यह कि पाठक को बड़ी आसानी से अपने साथ खड़ा लेता है, उन सारे घटना- क्रमों के बीच ,जैसे आपके सामने सब लाइव चल रहा हो।  यदि मैं यह कहूँ कि लेखक गायब हो जाता है और जैसे पाठक ही वह किस्सा सुनाने लग पड़ता है, तो गलत नहीं होगा। 

किताब आपके सामने देश का कच्चा चिट्ठा खोलती चलती है। बड़ी आसानी से आप अपने आस पास की चीज़ों, घटनाओं से तारतम्य बैठा लेते हैं। लेखक ने जिस तरह से अपनी यात्राओं का विवरण किया है कि बार- बार आप उसके स्वगत कथन को सुनकर अपने आप से भी प्रश्न करने लग जाते हैं कि क्या सारी सुविधाओं के हम हकदार हैं जो हमें अनायास ही प्राप्त हो गई हैं, अपने जन्म के स्थान के कारण? 

दूर दराज़ की यात्राओं पर ले चलता लेखक हर पहलू से रूबरू कराता चलता है। हम यह देखते हैं कि परिस्थितियाँ जो भी हों, बात व्यक्ति के स्तर पर ही आकर रुकती है। उसी के विकल्प, उसी के चुनाव उसके आगे के जीवन का रास्ता तय करते हैं। समाज के स्तर पर  थोड़ी सहभागिता  दिखती भी है, सरकारें इस मामले में ज़मीनी हक़ीक़त से दो- चार होती नहीं हैं, होना नहीं चाहती हैं। 

किताब की जिल्द पर लिखा है "हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर"। लेकिन यह किताब सिर्फ़ तस्वीर ही प्रस्तुति नहीं करती, सिर्फ़ तथ्य ही सामने नहीं ररखती, यह पाठक को अपने साथ जोड़ लेती है अनुभूति  के स्तर पर। हर अध्याय को पढ़ते वक़्त यह सवाल मन में उठने लगता है कि सरकारें कुछ नहीं कर रहीं, और लोगों की जानकारी से दूर जाने ऐसी कितनी बातें होंगी जहाँ कुछ किया जाना चाहिए। आप खुद को उन व्यक्तियों, घटनाओं के बीच पाने लगते हैं। लेखक की विवशता, गुस्सा, बेबसी, दुख, दर्द - सब जैसे आपके साथ घटित होने लगता है। ऐसा शायद इसलिए भी कि लेखक आपको अपने निजी दुख- अनुभव का भी साझीदार बना चुका है, एकदम शुरू से ही। 

भाषा और प्रवाह पहले ही पन्ने से आपका हाथ थाम अपने साथ लिए चलते हैं। मैंने तो कई बार लेखक की जगह खुद को मोटर साइकिल पर पीछे बैठा और मुड़कर छूटते हुए रास्तों को देखते हुए पाया। ट्रेन से दृश्यों को छूटता हुआ देखता पाया । किसी के साथ बेघर होता हुआ पाया और इन सब के बीच नखलिस्तान -से स्कूल में बच्चों के सँग मुस्कुराता हुआ पाया।  यानी कि  किताब की रोचकता शुरू से अंत तक बनी रहती है। किताब की आख़िरी पंक्ति आपको फिर बाँध लेती है, लेखक की अगली किताब के इंतज़ार में। 

लेखक ने जिन विषयों पर बात की है, उन सब पर अलग- अलग किताब लिखी जा सकती है।  हर अच्छी किताब आपके लिए नए मुहावरे और आपकी सोच को जगाने का सामान लेकर आती है; यह किताब भी। लेखक की भाषा और चिंतन की एक बानगी यहाँ प्रस्तुत है। मेरा विश्वास है कि यह बानगी आपको भी इस किताब को खरीदने और पढ़ने का मन बनाने का कारण देगी :-

" ये बताती हैं कि कमाठीपुरा के इलाके में दंगे नहीं होते। "

"अफ़सर के आने का मतलब है, कोई खतरा आ गया। "

"इनका यही अतीत इनके वर्तमान के सामने पहाड़-सा आकर रास्ता रोक रहा है।"


"वहाँ सैय्यद कंकर ने ऐसी बात कही जो मेरे दिल को भीतर तक छू गई। उसने कहा, “हमारे खेल की खास बात यह है कि हमने कभी भी इस पर टिकट नहीं लगाया। रास्ते पर जो मिलता है, हम उसे खुश करते हैं। हमारे लिए गरीब-अमीर सब बराबर हैं।”

"अपने समय से बीते समय में प्रवेश करना कष्टप्रद तो होता है। "

"असल में रोटी की गोलाई देश की सीमाओं से परे है और मजूरी यहाँ की सबसे बड़ी देशभक्ति है।"

"बेचैनी से विचार पैदा होते और विचारों से विचारधारा बनती जाती है। यही विचारधारा मुझे तटस्थ होने से बचाने लगी और शोषितों के पक्ष में और अधिक मुखर बनाती चली गई।"

"आमतौर पर प्रेरणाएँ विपरीत परिस्थितियों में पैदा होती होंगी।"

"अमरकंटक काल के कंठ में है।"

"जब-तब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो सोचता हूँ कि नदी के साथ चलना भर नदी की यात्रा नहीं होती है।"

"कटता जंगल, घोर अमंगल!"

"नर्मदा, कभी कई विस्थापनों की एक साझा कहानी लगती है। कभी अलग-अलग विसंगतियों का एक उपन्यास। कभी विरोधाभासों का धारावाहिक। कहीं लूट की फ़सल।"

"विचारों की यात्रा दृष्टिकोण तय करती है। दृष्टिकोण ही तो यात्रा के दौरान विनाश को विकास और विकास को विनाश के तौर पर रेखांकित करता है।"

"यहाँ से देखने पर यही लगता है कि विशालकाय बाज़ार को छोटा बाज़ार और विशालकाय सभ्यता को छोटी सभ्यता को रौंद डालने का कोई अधिकार नहीं है।"

"यहाँ दिन के उजाले में रात-सा सन्नाटा पसरा है।"

"यात्रा के दौरान अतीत को देखने का दृष्टिकोण वैसा नहीं रह जाता जो उसके पहले होता है।"

"यात्रा में लौटते हुए हमारा शरीर तो साथ लौटता है पर, मन तुरंत नहीं लौटता है। बहुत दिनों बाद लौटता भी है तो पूरा नहीं लौटता है।"

"यात्रा के बाद और बगैर किसी यात्रा के बावजूद लिखने पर जब अपना ही लिखा पढ़ता हूँ तो बहुत साफ़ यह अंतर समझ आता है कि यात्राएँ किसी लेखक या पत्रकार को यथार्थ के अनुभवों से पूर्ण कर उसके लेखन को समृद्ध बनाती हैं।"

किताबों को खरीद कर पढ़ने की बात इसलिए कि, क्यों करोड़ों हिन्दी पढ़ने वालों के होते हुए भी साल भर में किसी किताब की 25-50 हजार प्रतियाँ नहीं बिक सकतीं? यह भी कि क्यों हिन्दी की किताबों की बिक्री इतनी नहीं हो सकती कि लेखक सिर्फ लेखक हो कर रह सके। एक अदद नौकरी या बिजनेस के सपोर्ट की उसे जरूरत न पड़े।  प्रकाशकों को किताबों की बिक्री का इतना भरोसा हो कि वे किताबें कमीशन कर सकें और लेखक बेफिक्र हो कर लिख सके। 

किताब के लेखों के लिखने के बाद कुछ समय गुज़र चुका है। हालाँकि इससे लेखों की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर समय और साधन हों तो किताब के अगले संस्करण में कुछ चीज़ों की ताज़ा स्थिति जानना दिलचस्प होगा। जैसे मनरेगा में काम दिए जाने और भुगतान की स्थिति, स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या, बन्जारा समुदाय के जाति प्रमाण निर्गत होने की स्थिति, आदि। 

राजपाल प्रकाशन को बधाई, एक अच्छी किताब प्रकाशित करने के लिए। 

लेखक शिरीष खरे को बधाई  ।  उनकी यह किताब उनकी पिछली किताब 'उम्मीद की पाठशाला' की तुलना में विविध विषयों और ज्यादा विस्तृत फलक को समेटे हुए है। और भी ज्यादा विविध विषयों और विस्तृत फलक पर लिखने के लिए उन्हें ढेरों शुभकामनाएँ। 


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