शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

बान्द्रा वेस्ट : चौदह अप्रैल दो हजार बीस


बान्द्रा वेस्ट : चौदह अप्रैल दो हजार बीस
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घर जाना है, घर जाना है
साहब हमको घर जाना है !
तुमको खाली समझाना है
देखो साहब, घर जाना है

खोज-खबर लेने से क्या है
माना वाजिब सब चिंता है
एक बार बस घर जाना है
घर पर चाहे मर जाना है !

साहब देखो तुमको क्या है
हमको देखो कैसा क्या है
तुम खबरों से विचलित, हमको
बस खबरों में भर जाना है

अब हम खतरा, हम मुश्किल हैं
रोते चुपचुप दिल ही दिल हैं
हम ना होंगे, तब देखेंगे
किसने क्या-क्या कर पाना है

हम क्या समझें, हम क्या जानें
हम क्या देखें, हम क्या मानें
तिल-तिल कर मरने से अच्छा
एक बार में मर जाना है !

धूल पड़ा हो, बैठा हो तन
महल कि गलियाँ, या बन उपबन
जो भी फूल खिला जीवन का
उसको आखिर झर जाना है

घर में बैठे जब कहते हैं
थोड़ा-सा तो सब सहते हैं
क्या बतलाएँ क्या लगता है
अब कितना सह कर जाना है !

हमको तुमसे बैर नहीं है
अपना कोई, खैर, नहीं है
जंग अकेले ही लड़नी है
और नहीं अब भरमाना है

रोजी-रोटी और भला क्या
किस्मत ने है ऐसा पटका
तंगी कर देती है क्या-क्या
यह जीते-जी मर जाना है !

हमने कितना दाम लिया है
तुमने कितना नाम लिया है
नाम लिया बदनाम किया है
यहाँ नहीं फिर कर आना है

तुम आगे हम पीछे होंगे
तुम ऊँचे हम नीचे होंगे
जिसके हिस्से जितना होगा
उसको उतना भर पाना है

किसके आगे रोएँ जाकर
पाप कहाँ अब धोएँ जाकर
सारे आँसू सूख चुके हैं
अब तो बस हँस कर जाना है
अपने में धँस कर जाना है
मुट्ठी को कस कर जाना है
जाना है बस अब जाना है
बस बेबस हैं, अब जाना है
देखो साहब, घर जाना है
साहब हमको घर जाना है
घर जाना है, घर जाना है
घर जाना है, घर जाना है !!

रविवार, 5 अप्रैल 2020




आनंद विहार, दिल्ली
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जो उन पे गुज़री है
वो तुम क्या समझोगे
वो हम क्या समझेंगे

चीखेंगे चिल्लाएँगे
तस्वीरें दिखलाएँगे
दो दिन का शोर शराबा
फिर भूल भुला जाएँगे

पढ़ -पढ़ कर सीखा है
जो जाना -समझा है
उनको जाकर  देखो
जीना क्या जीना है

रोटी के लाले हैं
पैरों में छाले हैं
तिस पर दुनिया समझे
जैसे मतवाले हैं

जीना भी, मरना भी
अब जो भी करना भी
तो खुद ही कर लेंगे
जो खुद ही करना ही

जो भय है, संशय है
वो सबको है, तय है
खाली हाथ लड़ेंगे
वो, उतना ही तय है

हारेंगे जीतेंगे
दिन कैसे बीतेंगे
वो तुम क्या समझोगे
वो हम क्या समझेंगे

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

दोहे

जीवन को जो देखिए, उड़े गए दिन रैन
कैसी भागमभाग है ,  नहीं चैन को चैन  || 1

दुनिया रास किसे आइ, किसे मिला रे चैन
दिन  में  जो  सोता रहा, जागेगा  भर   रैन  || 2

कौन देस के तुम रहे, हम आए किस गाम
देखो कैसे  हम मिले,  भूल गए निज नाम  || 3

हँसी-ठिठोली और है, भीतर से मन साफ
ऐसे  तो  नहीं  सुनते,  हँस  के बोलो माफ  || 4                       

कागज काले कर लिए, मन को लिया बुझाय
अभी समझें  जग जीते, अभी   कि छूटा जाय  || 5

खुश रहिए बस आप से,  अपने   ही  के खास
अपना   आप ही अपना,  कौन किसी के पास  || 6


बच्चे आए जीत के, मम्मा की है जीत
खूब बधाइ आई है,  पापा  गाए  गीत  || 7

जितना जितना वो पढ़े , मम्मा उससे बीस
दो दो लोग पास करें ,   एकल दे के फीस  || 8

सुबह सवेरे वो  उठे,   रात  बिताए  जाग
घड़ी-घड़ी है वो चले,  एक घड़ी -सी भाग || 9

गुस्सा  उसका  देख  के, बच्चा  सहमा जाय
फिर भी दुनिया जो कहे, पास उसी के जाय  || 10

नई उमर में सँग रहे,  धीरे  जाए  छूट
फूटे बीज तभी बढ़े, न मानो गया फूट  || 11


अपना अपना दुख सहें,  और  रहें  गमगीन
जीवन ऐसा  कर लिया, जल में तरसत मीन  || 12

हँसना ठीक भूल गए, खुशी गई है भाग
बातें बीत-रीत गईं,  जीवन खाली झाग  || 13

कैसे याद  उसे करे, दिन भर इतना काम
जो तू खुद न खोजेगा, समय  न  देंगे राम  || 14

सूरज देरी आए तो , दिन क्या होता देर
 करना होता है जिसे,  उसे न बेर-कुबेर  || 15

थोड़ा थोड़ा गर करो, इक दिन पुर ही जाय
जो टला एक बार तो, फिर  टलता ही जाय  || 16


भर रस्ते मिलते रहे, टाले-टाल पुआल
धान ले के आए हैं, कितने भले खयाल  || 17

जब भी बेटी हो विदा , हो खाली घरबार
दूजे  घर  में  जा  रहे,  नया  बसे  संसार  || 18

धान तो धन-धान्य है,  खेतों  की है जान
धान लाए घर खुशियाँ, मान बढ़ाए धान  || 19

धान पहनना व गहना, धान  चमका सोना
 धान का  पाना पाना , खो  गया  तो खोना  || 20

पके धान से रँग गया, पूरा ही खलिहान
पूरी धरती धान की, धान-धान दिनमान  || 21



पानी  हारि   पनिहारी,  फूटी  मटकी-प्रेम
सजन, ढिग आऊँ कैसे, इत-उत छूटे नेम  || 22

मैं रहा जग के भीतर, उलझ-उलझ दिन-रात
माया   है    महाठगिनी,  करती   है   उत्पात  || 23

घट-घट भर के रास,रस, अब  काहे मुस्काय
टूट गया कि तोड़ा गया ,  कौन  अभी बतलाय || 24

बात पुरानी हो गई,  मुँह     काहे    लटकाय
देखो अपनी छाप को,नित-नित निखरी जाय  || 25

अपने मत्थे पड़ गया, इ तुगलकी फरमान
 परेशान हर आदमी, जान-जान  हलकान  || 26


मूढ़ता लाय मूढ़ता , और  बैर  को  बैर
बुद्धि कोने में दुबकी, मनाय अपनी खैर  || 27

ढोल नगाड़े बज रहे , कान में कुछ न जाय
समझे बूझे कुछ नहीं, फिर  भी  कूदे जाय  || 28

खूब टिकाने को मिला, सबकी  उस पर टेक
कस-कसा सब फेंक रहे, तू भी कस कर फेंक  || 29

सब बोलें बोल कुबोल, सब नाचें सब ओर
घोर अँधेरा हो चुका, अब इससे क्या घोर  || 30

अपनी बानी रोकिए,  करनी लीजै थाम
बस बैठें चुपचाप सब, नहीं बिगाड़ें काम  || 31

दिखने वाला सच नहीं, ना सुनी हुई ही बात
देखे  दिन  उजले नहीं, ना  काली  ही रात  || 32

साहब हाकिम लोग सब, नहीं सुनेगा कोय
धरिए  धीर  को  अपने , वही सहारा होय  || 33

अपनी ही ताली बजा, ठोके  अपनी  पीठ
गलती पर हँसती रहे, दुनिया कितनी ढीठ  || 34

ढोंग रचाने से कहो, धरम कहाँ निभ पाय
सबके आगे  जो कहे,  सूने  में  पछताय  || 35

चाल भी  बदले वही, कंधा  वही  मिलाय
सबको आगे कर रखे , फिर पीछे रह जाय  || 36

बाहर हँसना जानती, भीतर चाहे रोय
बाहर देखें लोग सब, भीतर देखे कोय  || 37

एक दिवस की बात है , चट से बीता जाय
धरम निभा के देखिए,  मन कैसा हो जाय  || 38

पूरा  हफ्ता  है  भरा,  पूरा   है  आदेश
असली रँग मिटता नहीं, लाख बनाओ वेश  || 39

हाथ जुड़ें बिन बात के, बात में मिसरि डाल
दाँत  निपोड़े  आदतन, मोटी  कर ली खाल  || 40

अपना  दही है मीठा, बातों  में  है  जोर
उनकी ऐसी बात पर, न कोई मचाओ शोर  || 41

पद के मद सा मद नहीं, ना है कोई भार
पद पद  करते सब मुए, पागल  है संसार  || 42

गलती  सबकी देख के,  माथा  ले गरमाय
गलत गलत ही है सही, अल्ला जान बचाय  || 43

बोली फूटे दीन पर, वरना फुटें न बोल
शेर  बने है मेमना,  खुल जाएगी पोल  || 44

अपना हित साधे रहे, भले कहे कुछ और
रस्ता ज्ञानी लोग का, यही आज का तौर  || 45

अपनी बानी बोल के , रहे लार टपकाय
ताली भी अपनी वही, खुद ही पीटे जाय || 46

चाचा  मामा  भईया , सर इंजन सब रेल
दुनिया सर सर कर रही, सबको पीछे ठेल  || 47

सर  करें  सत्कर्म  वही, सर  जो बोलें बोल
अँधे को दिख जाए जो, वो करते आँखें खोल  || 48


अपनी करनी देख के, आप रहे पछताय
जी सर जी मैम बोले, गंगा रोज नहाय  || 49

पाँच-पाँच मिनट करते, दिन तो जाए बीत
गया समय लौटे नहीं, यही  समय की रीत  || 50

दुख बाँटे बँटता नहीं,  सुख  बाँटे न कोय
ऐसे में किसका भला, क्या समझाऊँ तोय  || 51

बिन बात के बात करे , बिन मौके इतराय
मौके  सोभे  बात सब, कौन उसे समझाय  || 52

आज करें कल हो जाय, परसों हीरो होय
करने  से  सपने  पुरें, ये बतलाओ कोय  || 53

आँखें  मूँदे  राखिए,  बने  रहेंगे  मीत
भले वचन भी आपके, उनको लगते तीत  || 54

अपनी करनी देख के, फिर ही दीजे सीख
चाहे मिसरी हो घुली, फिर भी लागे तीख  || 55

खुली खुली हर बात है, कोई नहीं लजाय
बेटा बैठे फैल के,  बाप  खड़ा  ठिसुआय  || 56

बेटा दिखाए आँखें,   बेटा   मारे   लात
कलजुग जैसे लोग हैं, कलजुग जैसी बात  || 57

बाप हुआ तो क्या हुआ, करनी देखें आप
अपने जो ना सो करें, बच्चों  बोलें  पाप  || 58

एक अकेला क्या करे, अपना रस्ता नाप
अपने पथ से ना डिगे, रह जाएगी छाप  || 59

हमको कुछ समझे नहीं, कैसे  लें  मनवाय
दिन अब वैसे ना रहे, खुद को लो समझाय  || 60

चाहे कुछ भी बोलिए, पकड़ें उल्टा छोर
चाहे अपनी बात का, कोई ओर न छोर  || 61

दूजों को तो देख मत, अपने  बारे  जान
बस धरा रह जाएगा, जो भी है अभिमान  || 62

बाँटे कहीं बँटे नहीं,  रोए  ना  घट  जाय
अच्छी बातें सोचिए , दुख थोड़ा छँट जाय  || 63

बैठे  ज्यादा देर तक,   बैठे  ही  रह   जाय 
जड़ता जब छाए घनी, चेतन जड़ हो जाय  ॥ 64 












भोलाराम जीवित [ भगत -बुतरू सँवाद 2.0]

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