भगत जी - अरे आज पहले से ही बैठे हुए हो?
बुतरु - जी , आपने कहा
था न, वो चिंटू महाराज के विषय में और पता चला है ।
भगत जी - तो इतने उतावले क्यों हो ? देखो, एक पते की बात बताऊँ , कभी भी उतावलापन मत दिखाओ ।
जिज्ञासा सामने से आने दो । खुद बताओगे तो कीमत कम हो जाएगी । धरहुँ धीर ..। हर
बात , हर जगह, हर किसी से, हर बार बताने की नहीं होती । उत्साह अच्छी बात है ,
अति नहीं । खैर , क्या और पता चला है ?
बुतरु - जी, चिंटू महाराज के जन्म के
बारे में । जो जानकारी मिली है उसे अपने शब्दों में लिख कर लाया हूँ , अगर अच्छा लगे ।
भगत जी - ठीक है, चलो सुनाओ
।
बुतरु ने कथा कहनी
शुरु की :-
भए प्रगट.....
जिस देश में कहा
जाता है जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि । जिस देश में स्त्री शक्ति, दया, आदि का स्वरूप मानी जाती है । उसी देश में लिंगानुपात अनुकूल नहीं होता
है । उसी देश में कन्या-भ्रूण हत्या रोके नहीं रुक पाती है । उसी देश में स्त्री
निर्भय होकर नहीं घूम पाती है । सब कुछ समाप्त हो जाने पर नाम ‘निर्भया’ देकर छुट्टी पा ली जाती है । उसी देश में
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम के लिए आह्वान करने की
जरूरत पड़ती है ।
उसी देश में पुत्र
ही अभी भी रत्न है ।
उसी देश में चिंटू
जी का जन्म हुआ । वो प्रगट हुए ।
चिंटू की माँ के
चेहरे से भय की छाया हटी । दो बेटियों के बाद इस बार भी इतने सारे देवी-देवतओं के दरबार में मत्था
टेकने , मजारों पर चादर चढ़ाने और दान-पुण्य करने के बाद भी अगर पुत्र-रत्न की
प्राप्ति नहीं होती तो देवी-देवताओं का तो भगवान जानें,
चिंटू की माँ सुखी नहीं रह पातीं ।
तो खैर, चिंटू का
जन्म हुआ ।
चिंटू की दादी ने
संतोष के साथ पोते को देखा ।
चिंटू की माँ ने
आँखें बंद कर भगवान का शुक्रिया अदा किया ।
चिंटू के पिता ने
लड्डू बाँटे ।
चिंटू । चिंटू बउआ
। हाथों-हाथ लिए गए ।
कुछ फैशनेबल नाम
रखना था , सो चिंटू। हाँ, अक्षरों ,शब्दों
के वजन, असर के हिसाब से सोचते तो कुछ और नाम निकल सकता था ।
बहरहाल चिंटू नाम
फाइनल हुआ ।
चिंटू । एक तो
सबसे छोटी संतान । ऊपर से पुत्र रत्न । सबको चाकरी में लगना ही था । अच्छा हुआ
बेटियाँ चिंटू से बड़ी हुईं । सेवा- टहल की दिक्कत तो नहीं हुई । चिंटू बउआ ‘ठुमक चलत
रामचंद्र, से लेकर ‘मैं नहीं माखन खायो’ – सब तरह की लीलाएँ करते हुए बढ़ने लगे ।
समय के पंख होते
हैं ।
विद्यालय- गमन का
समय आ पहुँचा । न्यायालयों के फैसलों की , कुछ सरफिरे अधिकारियों की और
अधिकांश मामलों में मजबूरी की बात छोड़ दें तो हर सामर्थ्यवान पिता की तरह चिंटू
के पिता ने भी एक इंग्लिश मीडियम हाई प्रोफाइल स्कूल में चिंटू का नाम लिखा दिया ।
फॉरेन रिटर्न आदमी
और फॉरेन से आई चीजें ‘क्लास’ की होती हैं, वैसे ही
इंग्लिश मीडियम की पढ़ाई ढंग की होती है । आप कुछ बड़े-बड़े लोगों की बातों पर मत
जाईए जो कहते हैं कि अपनी भाषा में ही आदमी अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता है । कतई
नहीं ।
इंग्लिश और देसी
का फर्क तो समझते हैं ही !
चिंटू स्कूल जाने
लगे । चिंटू , चिंटू बाबा हो गए । बाबा माने ‘क्लास’।
स्कूल का ड्रेस ।
स्कूल का बैग । स्कूल की किताबें । सब एक जैसी । सब एक जगह से । अनुशासन, सुविधा और
अर्थ का अनोखा संगम ।
जो रट गया ,वो डट गया
। चिंटू बाबा उस्ताद थे। डटे रहे । और पढ़ाई थी ही क्या सिवा उत्तर पुस्तिका पर वमन
करने के ।
बच्चा कहिए , बउआ कहिए
या सिर्फ नाम लेकर पुकार लीजिए तो वो बात नहीं आती । नाम में बाबा जोड़ दीजिए । असर
देखिए ! एक गुलथुल, संपन्न घर की संतान का चित्र साकार हो
उठता है । नहाया-धुलाया ,साफ-सुथरा । जिसकी कमीज की बाँह पर
मुँह पोछने के दाग नहीं होते । जिसकी नाक कभी नहीं बहती । जिसको चुल्लू से पानी
नहीं पीना पड़ता । जिसको रोज - रोज रोटी और आलू की सब्जी टिफिन में नहीं मिलती ।
जिसको लेने-पहुँचाने के लिए आदमी तैनात रहते हैं ।
चिंटू भी ऐसे ही
बाबा बन रहे थे । चिंटू बाबा ।
चिंटू बाबा
शिक्षकों का आदर करते । शिक्षक चिंटू बाबा के पिता का । हिसाब बराबर हो जाता ।
चिंटू बाबा फायदे में रहते ।
चिंटू बाबा
दोस्तों के भी प्रिय थे । क्यों न हों , सुख-सुविधाओं की मुफ्त प्रदर्शनी
और इस्तेमाल किसे अच्छा नहीं लगता । फिर चिंटू बाबा तो थे भी जैसे रेशम के खोल में
लिपटे हुए । एक रेशमी अहसास सबको अच्छा लगता । चिंटू बाबा ने बहुत दुनिया देखी
नहीं थी तो रेशम के धागे उघड़े नहीं थे ज़रा भी ।
लेकिन चिंटू बाबा
बड़े तो हो रहे थे ।
इसके बाद बुतरु ने
जानकारी दी कि शुरुआती बचपन के विषय में अधिक जानाकारी नहीं मिल पाई है ।
भगत जी - ठीक ही है । लेकिन थोड़ा चिंटू बाबा के
चरित्र- निर्माण के बारें पता लगाने की कोशिश होनी चाहिए । स्कूल के दिन ही तो वे
दिन होते हैं । वैसे तुमने सुनाया अच्छे तरीके से है ।