मंगलवार, 22 सितंबर 2015

- भगत-बुतरु संवाद : चिंटू सीरीज़ : 2 : भए प्रगट ... –



भगत जी           - अरे आज पहले से ही बैठे हुए हो?

बुतरु              - जी , आपने कहा था न, वो चिंटू महाराज के विषय में और पता चला है ।

भगत जी           - तो इतने उतावले क्यों हो ? देखो, एक पते की बात बताऊँ , कभी भी उतावलापन मत दिखाओ । जिज्ञासा सामने से आने दो । खुद बताओगे तो कीमत कम हो जाएगी । धरहुँ धीर ..। हर बात , हर जगह, हर किसी से, हर बार बताने की नहीं होती । उत्साह अच्छी बात है , अति नहीं । खैर , क्या और पता चला है ?

बुतरु              - जी, चिंटू महाराज के जन्म के बारे में । जो जानकारी मिली है उसे अपने शब्दों में लिख कर लाया हूँ , अगर अच्छा लगे ।

भगत जी           - ठीक है, चलो सुनाओ ।

बुतरु ने कथा कहनी शुरु की :-

भए प्रगट.....
जिस देश में कहा जाता है जननी जन्मभूमिश्‍च स्वर्गादपि गरीयसि । जिस देश में स्त्री शक्ति, दया, आदि का स्वरूप मानी जाती है । उसी देश में लिंगानुपात अनुकूल नहीं होता है । उसी देश में कन्या-भ्रूण हत्या रोके नहीं रुक पाती है । उसी देश में स्त्री निर्भय होकर नहीं घूम पाती है । सब कुछ समाप्त हो जाने पर नाम निर्भया देकर छुट्‍टी पा ली जाती है । उसी देश में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम के लिए आह्वान करने की जरूरत पड़ती है ।
उसी देश में पुत्र ही अभी भी रत्‍न है ।
उसी देश में चिंटू जी का जन्म हुआ । वो प्रगट हुए ।

चिंटू की माँ के चेहरे से भय की छाया हटी । दो बेटियों के बाद इस बार भी  इतने सारे देवी-देवतओं के दरबार में मत्था टेकने , मजारों पर चादर चढ़ाने और दान-पुण्य करने के बाद भी अगर पुत्र-रत्‍न की प्राप्ति नहीं होती तो देवी-देवताओं का तो भगवान जानें, चिंटू की माँ सुखी नहीं रह पातीं ।
तो खैर, चिंटू का जन्म हुआ ।
चिंटू की दादी ने संतोष के साथ पोते को देखा ।
चिंटू की माँ ने आँखें बंद कर भगवान का शुक्रिया अदा किया ।
चिंटू के पिता ने लड्डू बाँटे ।

चिंटू । चिंटू बउआ । हाथों-हाथ लिए गए ।
कुछ फैशनेबल नाम रखना था , सो चिंटू। हाँ, अक्षरों ,शब्दों के वजन, असर के हिसाब से सोचते तो कुछ और नाम निकल सकता था ।
बहरहाल चिंटू नाम फाइनल हुआ ।

चिंटू । एक तो सबसे छोटी संतान । ऊपर से पुत्र रत्‍न । सबको चाकरी में लगना ही था । अच्छा हुआ बेटियाँ चिंटू से बड़ी हुईं । सेवा- टहल की दिक्कत तो नहीं हुई । चिंटू बउआ ठुमक चलत रामचंद्र, से लेकर मैं नहीं माखन खायो – सब तरह की लीलाएँ करते हुए बढ़ने लगे ।

समय के पंख होते हैं ।

विद्यालय- गमन का समय आ पहुँचा । न्यायालयों के फैसलों की , कुछ सरफिरे अधिकारियों की और अधिकांश मामलों में मजबूरी की बात छोड़ दें तो हर सामर्थ्‍यवान पिता की तरह चिंटू के पिता ने भी एक इंग्लिश मीडियम हाई प्रोफाइल स्कूल में चिंटू का नाम लिखा दिया ।

फॉरेन रिटर्न आदमी और फॉरेन से आई चीजें क्लास की होती हैं, वैसे ही इंग्लिश मीडियम की पढ़ाई ढंग की होती है । आप कुछ बड़े-बड़े लोगों की बातों पर मत जाईए जो कहते हैं कि अपनी भाषा में ही आदमी अपना सर्वश्रेष्‍ठ दे सकता है । कतई नहीं ।

इंग्लिश और देसी का फर्क तो समझते हैं ही !

चिंटू स्कूल जाने लगे । चिंटू , चिंटू बाबा हो गए । बाबा माने क्लास

स्कूल का ड्रेस । स्कूल का बैग । स्कूल की किताबें । सब एक जैसी । सब एक जगह से । अनुशासन, सुविधा और अर्थ का अनोखा संगम ।
जो रट गया ,वो डट गया । चिंटू बाबा उस्ताद थे। डटे रहे । और पढ़ाई थी ही क्या सिवा उत्तर पुस्तिका पर वमन करने के ।

बच्चा कहिए , बउआ कहिए या सिर्फ नाम लेकर पुकार लीजिए तो वो बात नहीं आती । नाम में बाबा जोड़ दीजिए । असर देखिए ! एक गुलथुल, संपन्न घर की संतान का चित्र साकार हो उठता है । नहाया-धुलाया ,साफ-सुथरा । जिसकी कमीज की बाँह पर मुँह पोछने के दाग नहीं होते । जिसकी नाक कभी नहीं बहती । जिसको चुल्लू से पानी नहीं पीना पड़ता । जिसको रोज - रोज रोटी और आलू की सब्जी टिफिन में नहीं मिलती । जिसको लेने-पहुँचाने के लिए आदमी तैनात रहते हैं ।

चिंटू भी ऐसे ही बाबा बन रहे थे । चिंटू बाबा ।

चिंटू बाबा शिक्षकों का आदर करते । शिक्षक चिंटू बाबा के पिता का । हिसाब बराबर हो जाता । चिंटू बाबा फायदे में रहते ।

चिंटू बाबा दोस्तों के भी प्रिय थे । क्यों न हों , सुख-सुविधाओं की मुफ्त प्रदर्शनी और इस्तेमाल किसे अच्छा नहीं लगता । फिर चिंटू बाबा तो थे भी जैसे रेशम के खोल में लिपटे हुए । एक रेशमी अहसास सबको अच्छा लगता । चिंटू बाबा ने बहुत दुनिया देखी नहीं थी तो रेशम के धागे उघड़े नहीं थे ज़रा भी ।

लेकिन चिंटू बाबा बड़े तो हो रहे थे ।

इसके बाद बुतरु ने जानकारी दी कि शुरुआती बचपन के विषय में अधिक जानाकारी नहीं मिल पाई है ।


भगत जी           - ठीक ही है । लेकिन थोड़ा चिंटू बाबा के चरित्र- निर्माण के बारें पता लगाने की कोशिश होनी चाहिए । स्कूल के दिन ही तो वे दिन होते हैं । वैसे तुमने सुनाया अच्छे तरीके से है ।

बुधवार, 2 सितंबर 2015

- भगत-बुतरु संवाद : चिंटू सीरीज़ : 1 –



भगत जी     - कुछ कहना चाह रहे हो ? तुम्हारा चेहरा तुमसे पहले ही कह देता है !

बुतरु        - हाँ SSS । असल में एक बड़ा जोरदार भाषण हाथ लगा है । एक मित्र के यहाँ देखा था । उसको पूरा लिख कर ले आया हूँ ।

भगत जी     - किसका भाषण है ?

बुतरु        - चिंटू महारज का ।

भगत जी     - चिंटू महाराज ! नाम ही रोचक प्रतीत होता है । ठीक है सुनाओ ।

बुतरु ने सुनाना शुरू किया –

बड़ी भारी भीड़ थी । लोग एक दूसरे पर चढ़े जा रहे थे । चिंटू महाराज कह रहे थे : -

हमारा देश एक भावना-प्रधान देश है । आपने कृषि-प्रधान सुना होगा । समाजशास्त्रीय और व्यवहारिक तरीके से सोचेंगे तो पाएँगे कि देश पूर्ण-रूपेण भावना-प्रधान है ।

कभी स्थिर हो कर देखने-सोचने-समझने की कोशिश करें ।

भावना को उभारा जाता है । भावना से खेला जाता है । भावना को भड़काया जाता है । भावना को आहत किया जाता है । भावना का सम्मान किया जाता है । .....है कि नहीं ?

सभा में चुप्पी । मानो सभी सचमुच ही सोचने- समझने लग गए हों ।

अच्छा एक बात बताईए, चिंटू महारज ने आगे कहा –
क्रिकेट देखते हैं आपलोग ?

हाँ का हुँकारा लगाया भीड़ ने ।

और अगर आप न भी देखते हों, तो घर में देखने वाले दीवाने तो होंगे ही ।
क्यों देखते हैं भाई ?
भावना । विशुद्ध भावना ।

देखिए, खेलने वालों को पैसा मिल जाता है । आयोजकों- प्रायोजकों को पैसा मिल जाता है । और देखने वालों को ? भावना तुष्‍ट होती है । किसी को सपोर्ट किया, किसी को जिताया । यही न ?

खेलने वालों की भी भावना होती है । पर एक बात सोचिए, उनका तो काम है खेलना ।
बाकियों का ?

सब अपना काम-धंधा छोड़कर ही बैठे रहते हैं न ?

यही बात आप फिल्मों पर भी लागू कर सकते हैं । बल्कि मैं कहता हूँ , हर चीज पर ।
आप यहाँ इस सभा में आए हैं – इस पर भी ।

भीड़ में कई चेहरे मुदित हुए । अनुमोदन में हिले । और तकरीबन सब-के-सब इस भावना से ग्रसित हो गए कि क्या ज्ञान की बात कही है महाराज ने ! जय हो !

महाराज आगे कह रहे थे –

आपने मीडिया का हाल देखा ही है ।

खबरें । सनसनी । प्रचार-प्रसार । टीआरपी । विज्ञापन । प्रायोजक । पैसा । मीडिया । खबरें ।

भावना का पूरा दुश्‍चक्र ही है । कुछ लोगों को अर्थशास्त्र में पढ़ा हुआ गरीबी का दुश्‍चक्र याद आ रहा होगा ।

हल्की-मद्धम करतल ध्वनि संचारित हो गई ।

भावनाओं को, अगर ध्यान देंगे , तो अपनी हर तरफ पाएँगे । और तरह-तरह की भावनाओं को।

हमारे देश में आमतौर पर हर पाँच साल में, कभी-कभी जल्दी भी, भावनाओं का पूरा खेल होता है । पूरी उठा-पटक चलती है । हर तरह की भावनाएँ सक्रिय हो जाती हैं ।

अब देखिए भावनाओं के प्रकार । विभिन्न रंगों वाली – केसरिया । हरी । सफेद । लाल । पीली। नीली । गोरी । काली ।

सामिष । निरामिष ।
धीर । अधीर ।
कलुषित । सात्विक ।

कहने का तात्पर्य है कि आपके जीवन का हर एक क्षण भावनाओं से जुड़ा हुआ है । बल्कि मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ , भावनाओं से बँधा हुआ है ।भावना- चालित है ।

हाँ, एक और तरह की भावना जोड़ना चाहूँगा, आज के परिप्रेक्ष्य में ।

सब लोग मंच की ओर देखने लगे ।

महाराज ने मुस्कुरा के कहा –

रेसिडेंट । नॉन – रेसिडेंट ।

सभा में एक ठहाका फूट पड़ा ।

देखिए, मैं भी क्या कर रहा हूँ ? भावानाओं को व्यक्त ही कर रहा हूँ । हाँ, इतना जरूर है ,और मैं यह दावा कर सकता हूँ कि मैंने पूरे जनमानस की भावनाओं को पकड़ लिया है और उसे ही आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

सभा में फिर से तालियाँ गूँज गईं ।

महारज ने फिर कहा :-
बहुत समय हो गया है । आप सबों के भी कई काम होंगे । मेरा तो काम है प्रवचन । पर आपको तो जरूरी काम होंगे । फिर अब तक तो क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम भी लागू हो चुका है आपके यहाँ बैठे रहने पर !

तालियाँ गड़गड़ा गईं इस बार ।

चिंटू महाराज मंच पर हाथ जोड़े खड़े हो गए । लोग उनके सामने शीश नवाते गुजरने लगे । मंच के कोने में शीशे का दान-पात्र रखा था । उसका रंग इंद्रधनुषी-सा होने लगा – नीला,हरा , लाल .....।

भगत जी     - सचमुच रोचक।

बुतरु        - अभी इससे भी ज्यादा रोचक है । दरअसल वीडियो में कुछ अन-डिलीटेड सीन्‍स भी रह गए हैं । उनको भी सुन लीजिए :-

बुतरु ने आगे सुनाया । सभा के थोड़ी देर बाद का वीडियो था । चिंटू महाराज आधिकारिक पीत-वस्त्रों के स्थान पर कुर्ते पाजामे में चाय पी रहे थे ।

उन्होंने चेले से पूछा - कैसा बोले? ठीके-ठाक न?

चेला               - ठीके-ठाक ? क्या बोलते हैं ? अईसा चलता रहेगा न तो बाजी मराइए गया समझिए ।

चिंटू महाराज        - हाँ, थोड़ा प्रैक्टिस और जरूरी हो गया है । इ भासन को थोड़ा ठीक से लिखना होगा । और कोटेसन – उटेसन का भरमार भी रखना होगा । डायलोग जरूरी होता है । है कि नहीं ?

चेला               - एकदम्मे ठीक है महाराज ।


भगत जी     - गज़ब ! ये क्या है भाई ?

बुतरु        - वही तो ! लगता है महाराज पब्लिक में कुछ और हैं, प्राइवेट में कुछ और । वैसे हो सकता है सिर्फ लैंग्वेज का इश्यू हो थोड़ा ।

भगत जी     - जो भी हो । है इंटरेस्टिंग । ऐसा करो तुम्हारा होम-टास्क हुआ कि इन महाराज के बारे में पूरा पता करो और हमलोगों को बताओ । हमलोग जरूर किसी रोचक किस्से के मुहाने पर खड़े हैं ।


बुतरु        - जी, कोशिश करता हूँ ।  

भोलाराम जीवित [ भगत -बुतरू सँवाद 2.0]

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