मंगलवार, 10 जनवरी 2023

भरतु भरत सम जानि -- किशोर कुमार : द अल्टीमेट बायोग्राफ़ी

 


भरतु भरत सम जानि

( किशोर कुमार : द अल्टीमेट बायोग्राफ़ी ) 


दिल ढूँढ़ता हैगाने की चर्चा करते हुए गुलज़ार साहब कहते हैं मिसरा ग़ालिब का है और कैफ़ीयत हरेक की अपनी-अपनी किशोर कुमार : द अल्टीमेट बायोग्राफ़ीपढ़ने के बाद ऐसा  ही कुछ कहने की छूट लेने की इच्छा मेरी भी हो रही है और मेरा विश्वास है कि हर पाठक भी इसे पढ़ने के बाद अपने-अपने किशोर कुमार को देखेगा । यही इस किताब की सफलता है । 

रामचरितमानस में भरत के गुणों की चर्चा करते हुए जब उनके उपयुक्त कोई भी उपमा नहीं ढूँढ़ पाए तब तुलसीदास ने लिखा भरतु भरत सम जानि यानी भरत जी के समान बस भरत जी ही हैं, ऐसा जानो । अनिरुद्ध भट्‍टाचारजी और पार्थिव धर द्वारा लिखी गई किशोर कुमार की जीवनी किशोर कुमार : द अल्टीमेट बायोग्राफ़ीपढ़ने के बाद किशोर कुमार के बारे में भी सिर्फ यही कहा जा सकता है – किशोर कुमार के समान बस किशोर कुमार ही हैं ! 

किशोर कुमार का नाम हमने इतना सुना है, उनके गानों में हम इतना डूबे हैं कि लगता है किशोर कुमार के बारे में तो हम सब जानते ही हैं ! किशोर कुमार 75-80 वर्षों से समकालीन बने हुए हैं । हर उम्र के लोगों के लिए उनके हिसाब से समकालीन । किताब की भूमिका में ही लेखकगण यह बताते हैं कि 2012 और 2013 में भी फिल्मफेयरपत्रिका के सर्वे में किशोर कुमार सर्वकालिक श्रेष्ठ गायक के रूप में चुने गए । 

यह किताब हमें किशोर कुमार से मिलवाती है । किशोर कुमार को किशोर कुमार बनते हुए हम देखते हैं । जीवनी में तथ्यों के आधार पर नायक की कथा बुनी जाती है । इस किताब को पढ़ते समय बार-बार इस बात का कायल होना पड़ता है कि छोटी से छोटी जानकारी को भी, जो किशोर कुमार को किशोर कुमार बनाती है, कथा में बड़ी खूबसूरती से पिरोया गया है। किशोर कुमार असाधारण प्रतिभा से संपन्न थे यह बात इस किताब में बार-बार रेखांकित होती है । वे अपनी प्रतिभा से फिल्म लाईन और कला के क्षेत्र के लोगों को बार- बार अचंभित करते हैं । किशोर कुमार अपने गायकी से फिल्म प्लेबैक को एक नए स्तर पर ले गए । कल्याणजी आनंदजी को उद्धृत करते हुए लेखक लिखते हैं कि यह किशोर ही हैं जिन्होंने इस बात का एहसास कराया कि गाने स्क्रिप्ट में घुले-मिले  हो सकते हैं, फिल्म के सुर से सुर मिलाकर चल सकते हैं । जबकि किशोर के पहले गाने खूबसूरत तो होते थे लेकिन स्क्रिप्ट के साथ उनका तारतम्य नहीं होता था, वे स्क्रिप्ट को बाहर से सजाने वाले आभूषण की तरह होते थे। इसका एक कारण शायद यह भी था कि किशोर कुमार अभिनेता के अंदाज़ को इस तरह आत्मसात करके गाते थे कि यह लगता ही नहीं था कि अभिनेता नहीं गा रहा बल्कि किशोर कुमार का प्लेबैक है । देवानंद और राजेश खन्ना से जुड़े अध्यायों में लेखक ने इस पर विस्तृत चर्चा की है । बाद के दिनों में अमिताभ बच्चन की आवाज़ की बारीकियों को पकड़ने या फिर शत्रुघ्न सिन्‍हा के लिए गाए ब्लैक मेलफिल्म के गाने शरबती तेरी आँखों कीबात भी इसी संदर्भ में प्रस्तुत की गई है ।   

किताब में बहुत सारी ऐसी जानकारियाँ हैं जो पाठक अगर तारतम्य बिठा पाए तो उसके सामने घटनाओं का, किशोर कुमार के चरित्र का एक नया ही रंग प्रस्तुत करती हैं। जैसे कि किशोर कुमार के पैसा पकड़ने की बात बहुत सुनी जाती है, लेकिन इस किताब में अलग-अलग जगहों पर ऐसी घटनाओं का ज़िक्र है जिन्हें मिलाकर देखें तो उनकी एक दयालु, मददगार और दरियादिल इंसान की छवि उभरती है । 

किशोर कुमार की छवि एक खिलंदड़, कभी-कभी थोड़े सनकी, इंसान की है । उस छवि के पीछे एक संवेदनशील कलाकार था । आस-पास के माहौल और फिल्मों/ गानों के गिरते स्तर से व्यथित कलाकार । किशोर कुमार के इस पक्ष को भी यह किताब बहुत सलाहियत के साथ हमारे सामने रखती है । उनकी पीड़ा कई-कई रूपों में बार-बार प्रकट होती रही । कई बार संगीत में विधिवत शिक्षित न होने पर  उनकी क्षमताओं पर भी प्रश्न किया गया । हर बात पीड़ा देती, लेकिन उन सब बातों का जवाब किशोर कुमार का गाना ही है । हर उम्र, हर तबके, हर गुणी – हर तरह के लोगों के प्रिय किशोर कुमार । यह बिना कारण ही नहीं है कि उनके प्रशंसकों में भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व और सत्यजीत राय जैसे दिग्गज भी हैं । 

इस किताब में हम यह भी देखते हैं कि किस तरह किशोर कुमार सत्ता के सामने तन कर खड़े होते हैं । यह माद्दा बहुत कम लोगों में ही होता है । किशोर कुमार का व्यक्तित्व और चरित्र भी असाधारण था । किताब में इस विषय पर विस्तार से चर्चा की गई है । 

किशोर कुमार के जीवन के आखिरी दिन का चित्रण बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से किया गया है । आँखों में एक नमी का एहसास होता है और जैसे बैकग्राउंड में किशोर कुमार की आवाज़ में धीमे-धीमे गीत बजता है दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना, जहाँ नहीं चैना वहाँ नहीं रहना...  । फिर किताब के कवर पर ध्यान जाता है, मुस्कुराहट के पीछे की उदासी थोडा उदास कर जाती है । क्या दुनिया ने किशोर कुमार को वह श्रेय नहीं दिया जिसके वो हकदार थे ?! 

किताब कितनी मेहनत से लिखी गई है इसका अंदाज़ा किताब से गुज़र कर ही होता है। किताबों को जिस तरह से जीवन-क्रम के अनुसार अध्यायों में बाँटा गया है, वह इस किताब को एक जर्नलया डायरी का रूप भी देता है । अगर किशोर कुमार जर्नल’/ डायरी लिखते तो शायद कुछ ऐसा ही लिखते।  किशोर कुमार को जानने के लिए, उस समय के फिल्म-इतिहास को जानने के लिए, उस समय के माहौल को जानने के लिए यह किताब रास्ता तैयार करती है । 

        कल्याणजी आनंदजी, किशोर कुमार और अमिताभ बच्चन – इस कॉम्बिनेशन पर भी थोड़ी चर्चा होती तो और अच्छा रहता । अमिताभ को अमिताभ बनाने में इन गीतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। 

      इस रोचक किताब का हिंदी अनुवाद भी लाया जाना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह पहुँच सके ।

 

 

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