रविवार, 28 अगस्त 2022

'अच्छा आदमी' : समय और समाज की ' कॉन्फ़िडेंशियल रिपोर्ट'



 





'अच्छा आदमी' : समय और समाज की ' कॉन्फ़िडेंशियल रिपोर्ट'


          कई बार ऐसा होता है  जब किसी कलाकार का कोई काम देख हम उसे 'डिस्कवर' करने लगते हैं, जबकि वे यहीं होते हैं बहुत समय से। 'न्यूटन' में पंकज त्रिपाठी को देखकर अभिनेता पंकज त्रिपाठी को डिस्कवर करना शुरू किया, फिर खूब उनकी फिल्में देखीं, खूब उनके इंटरव्यू सुने। जुबिन नौटियाल का ' दिल दर ब दर' गाना सुनने के बाद आजकल उन्हें डिस्कवर कर रहा हूँ। पता चला   कि कृष्ण- भजन ' मनमंदिर में सजे बिहारी' उन्होंने ही गाया है। जबकि इस भजन को तो कब से सुन रहा हूँ, जैसे उनके गाये कबीर के दोहों को। कुछ ऐसा ही हाल पंकज मित्र के कहानी संग्रह ' अच्छा आदमी' को कल पढ़ लेने के बाद से है। यह उनका पाँचवा कहानी संग्रह है, पर मेरे लिए पहला!  अब खोजबीन जारी है। डिस्कवर किए जाने का भी शायद मुहूर्त  होता है  ! 

      संग्रह में नौ कहानियाँ हैं। पतली- सी किताब 142-145 पेज की। दाम भी ज्यादा नहीं। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित। 

       अगर आपने 'रेणु' को पढ़ा है और अगर आपको पूर्णिया जाने का मौका मिला हो तो आप समझ सकते हैं कि 'रेणु' का लेखन पूर्णियामय है या फिर पूर्णिया और आसपास का इलाका अपनी पूरी भौगोलिकता और सामाजिकता में 'रेणुमय'  ! इस संग्रह को पढ़ते समय मुझे पंकज मित्र और राँची के बीच भी वैसा ही संबंध लगा। राँची  और आसपास कहानियों की रगों में दौड़ता है और लहू बन के आँख से टपकता भी है  ! 

         पंकज मित्र चरित्रों के या स्थानों के स्केच आपके सामने नहीं खींचते, बल्कि उन्हें खुद ही बोलने- बतियाने देते हैं। पात्र संवादों के ज़रिये अपने आप को, अपने चरित्र को प्रस्तुत करते हैं। कहानियाँ इतनी रोचक हैं कि पेज के बाद पेज पलटने को बाध्य करती हैं - ' पेज टर्नर'। भाषा और शब्दों का जो प्रयोग वे करते हैं उसे देख के मुझे लगता है कि वे अपनी उम्र के और अपने से छोटी उम्र के लोगों से अच्छे संपर्क में हैं  । एक अनौपचारिकता, एक खुलापन और बौद्धिकता के भार से रहित होना उनकी भाषा में सहज लक्ष्य किया जा सकता है  । 
  
      कुछ कहानियों में पात्रों, स्थान और घटनाओं को बिल्कुल ही साफ़- साफ़ देखा जा सकता है, खास तौर पर 'सिली प्वाइंट' और 'मुँहबली' में। बाकी कहानियों में आप सीधे- सीधे ऊँगली नहीं रख सकते, या हो सकता है मेरी जानकारी का विस्तार उतना नहीं। 'ऐपफ़रोश' जो भवानी प्रसाद मिश्र की 'गीत फ़रोश' की तर्ज़ पर शुरू होती है, अपने बरतने में हरिशंकर परसाई के निबंधों/ कहानियों की याद दिलाती है। धार और रफ़्तार दोनों के स्तर पर मारक कहानी। 

      'मंगरा मॉल' में बाज़ारवाद, पूँजीवाद की भयावहता तो है ही, बड़ी ही शान्ति से लेखक ने इस बात को भी रेखांकित किया है कि आदिवासी समाज में भी लोभ, महत्वाकांक्षा और बेइमानी की घुन लगनी शुरू हो चुकी है। यह एक ज्यादा त्रासद भविष्य का संकेत है। इसी कहानी में लेखक ने मांदर की ध्वनियों का बखूबी इस्तेमाल किया है जो एक बार फिर ' रेणु' की याद दिलाता है। 

      'कॉन्फ़िडेंशियल रिपोर्ट' और 'आस' कहानियों में वह समाज और उस समाज की वह बातें हैं जिसमें हम रहते तो हैं पर जिसके बारे में खुल कर हम बात नहीं करते। कहानियों में पीठ -पीछे  दबी ज़ुबान में कही गई बातें भी साफ़- साफ़ सुनाई पड़ती हैं। 'आस' कहानी का अंत 'मदर इंडिया' की नर्गिस और 'वास्तव' की रीमा लागू की याद दिला सकता है। 

      पंकज मित्र अपनी भाषा से ' शाहदेव मेंशन' में एक तिलिस्मी दुनिया बुनते हैं- एकदम घुप्प् अँधेरी रात का नीला- नीला तिलिस्म। इस कहानी पर फ़िल्म बनाई जा सकती है। 'अच्छा आदमी' और 'रात के पार चलो' पर भी  । जिस तरह ' रात के पार चलो' के अंत में  आए गीत का हिन्दी अनुवाद लेखक ने दिया है, 'शाहदेव मेंशन' में आए शेक्सपियर  के संवादों का भी हिन्दी- अनुवाद दिया जा सकता था।  'रात के पार चलो' में एक और बात जो कहानी कहती है, वह यह कि सरकारी कंपनियां किसी क्षेत्र में काम करती हैं तो हर तबके का खयाल रखती हैं, जबकि प्राइवेट कंपनियों के साथ ऐसी बाध्यता नहीं। इस तरह यह कहानी पूंजीवाद के विरुद्ध खड़ी हो जाती है, बिना किसी शोर- शराबे के। 
    ' अच्छा आदमी'  कहानी हमारे समय के समाज और परिवार की सच्चाई को उसकी विडंबनाओं  और विद्रूपता के साथ पेश करती है। 

   इस संग्रह की कहानियों से गुज़रते हुए आप पाएँगे कि हर कहानी चरित्रों, स्थानों और घटनाओं की एक कॉन्फ़िडेंशियल यानी गोपनीय रिपोर्ट ही है जिसे हम और आप यानी कि इसके पाठक अपने- अपने निजी क्षणों में पढ़ रहे हैं। 

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